सुगम्यता

भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति डॉ. डी. वाई. चंद्रचूड़ ने सर्वोच्च न्यायालय सुगम्यता समिति के अध्यक्ष, माननीय न्यायमूर्ति एस.रवींद्र भट की उपस्थिति में सर्वोच्च न्यायालय समिति द्वारा निर्मित एक ऐतिहासिक रिपोर्ट जारी की, जो भारत के सर्वोच्च न्यायालय को समावेशिता और सुगम्यता का समर्थक बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
पिछले वर्ष दिसंबर में भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश द्वारा गठित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की अध्यक्षता में इस समिति का गठन एक व्यापक उद्देश्य के साथ किया गया था: अक्षम व्यक्तियों के लिए सर्वोच्च न्यायालय को सुगम्य बनाने में आने वाली बाधाओं की पहचान करना और उनका समाधान करना। सर्वोच्च न्यायालय की सुगम्यता समिति ने अक्षम व्यक्तियों के लिए भौतिक और कार्यात्मक दोनों प्रकार से सर्वोच्च न्यायालय की सुगम्यता का गहन मूल्यांकन किया, एक बहुआयामी पद्धति को नियोजित किया जिसमें न्यायालय के बुनियादी ढांचे की भौतिक लेखापरीक्षा, परिचालन मूल्यांकन और व्यापक हितधारक परामर्श शामिल थे। विकलांगता अधिकार विशेषज्ञों सहित विभिन्न हितधारकों ने प्रश्नावली और प्रत्यक्ष निविष्टियों के माध्यम से अमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान की, जिसने न्यायालय की वर्तमान सुगम्य स्थिति और सुधार की आवश्यकता वाले क्षेत्रों की समृद्ध, समग्र ग्रहणशक्ति में योगदान दिया। समिति ने महिलाओं, विशेषकर गर्भावस्था के दौरान और वरिष्ठ नागरिकों द्वारा सामना की जाने वाली अनूठी चुनौतियों को समझने और संबोधित करने पर भी ध्यान केंद्रित किया, यह मानते हुए कि अधिवक्ताओं की एक महत्वपूर्ण संख्या वरिष्ठ नागरिकों की है। सुगम्यता समिति ने एचआईवी सकारात्मक/संरक्षित व्यक्तियों हेतु विशेष न्यायालयी प्रक्रियाओं के संबंध में ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस और एक्वायर्ड इम्यून डेफिशिएंसी सिंड्रोम (रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 2017 में उल्लिखित अनूठी आवश्यकताओं पर भी संक्षेप में ध्यान केंद्रित किया।
समिति के अध्ययन ने विचारों की एक श्रृंखला का अनावरण किया है जो सर्वोच्च न्यायालय की सुगम्यता रूपरेखा में वृद्धि हेतु ध्यान देने योग्य है। कार्यात्मक क्षेत्रों की खोज में, अध्ययन ने कुछ ऐसे क्षेत्रों को अनावृत किया जिनमें अधिक समावेशी वातावरण को बढ़ावा देने के लिए संवर्धन की आवश्यकता है।
सुगम्यता समिति ने सर्वोच्च न्यायालय की समावेशिता और नौवहन क्षमता को बढ़ाने की अनुशंसा की हैं। समिति ने अग्नि सुरक्षा चिंताओं सहित विकलांगता-अनुकूल बुनियादी ढांचे और कार्यालय वातावरण को शामिल करने का भी प्रस्ताव दिया है। समिति ने बेहतर सुरक्षा और निकासी प्रक्रियाओं और अवसंरचनात्मक विकास के अलावा, समान अवसर नीति को लागू करने और कियोस्क और क्यूआर नेविगेशन प्रणाली जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकियों को स्थापित करने का सुझाव दिया है।
समिति के सदस्यों में बेंगलुरु में नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. संजय जैन; एन.ए.एल.एस.ए.आर. यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ के विकलांगता अध्ययन केंद्र द्वारा नामित एक स्वतंत्र सुगम्यता विशेषज्ञ श्री नीलेश सिंगित; सर्वोच्च न्यायालय बार एसोसिएशन द्वारा नामित श्री वी. श्रीधर रेड्डी; भारत के सर्वोच्च न्यायालय की कर्मचारी सुश्री शक्ति मिश्रा; और भारत के सर्वोच्च न्यायालय समिति के सदस्य सचिव के रूप में अतिरिक्त निबंधक(रजिस्ट्रार) श्री सुनील चौहान शामिल थे। समिति को दो उप-समितियों के सदस्यों, विशेष रूप से, श्री राहुल बजाज, और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के निबंधक(रजिस्ट्रार) श्री हरगुरवरिंदर एस. जग्गी द्वारा सहायता प्रदान की गई। उप-समितियों की अंतर्दृष्टि से परे, वरिष्ठ अधिवक्ता, सुश्री प्रिया हिंगोरानी, अधिवक्ता,डॉ. श्वेता हिंगोरानी, और दिल्ली विश्वविद्यालय के मैत्रेयी कॉलेज की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. स्मृति सिंह से सहयोग प्राप्त हुए। समिति को ई-समिति में मानव संसाधन सदस्य सुश्री आर. अरुलमोझिसेल्वी के सहयोग से भी लाभ हुआ।