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    न्यायमूर्ति पमिदिघनतम श्री नरसिम्हा

    pamidighantam sri narasimha

    माननीय न्यायमूर्ति 03 मई 1963 को हैदराबाद में श्रीमती सत्यवती और दिवंगत न्यायमूर्ति श्री पी. कोदंडा रामय्या के घर में जन्मे। उन्होंने हैदराबाद के निज़ाम कॉलेज से अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान और लोक प्रशासन में तीन मुख्य विषयों के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की, और 1988 में कैंपस लॉ सेंटर, दिल्ली विश्वविद्यालय से विधि की पढ़ाई की। उसी वर्ष वे एक अधिवक्ता के रूप में नामांकित हुए और हैदराबाद में उच्च न्यायालय, सिविल न्यायालयों और अधिकरणों के समक्ष वकालत की और अधिवक्ता अभ्यास को सर्वोच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया। वह सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष संविधान पीठ सहित बहुत सारे मामलों में उपस्थित हुए। इस दौरान, उन्हें न्यायमूर्ति चिन्नप्पा रेड्डी आयोग के लिए आयोग के अधिवक्ता के रूप में नियुक्त किया गया था। वह सर्वोच्च न्यायालय विधिक सहायता समिति के सदस्य थे।

    उन्हें वर्ष 2008 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्ण न्यायालय द्वारा एक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था। एक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में, वे संवैधानिक, प्रशासनिक और पर्यावरणीय मुद्दों से जुड़े कई सार्वजनिक विधि मामलों में पेश हुए। उन्होंने दूरसंचार, प्रतिस्पर्धा, बिजली और अन्य नियामक क्षेत्राधिकारों से संबंधित विधियों में विशेषज्ञता हासिल की। वह वन पीठ और न्यायिक नियुक्तियों, फ़ास्ट ट्रैक न्यायालयों और जनजातीय विधियों से संबंधित अन्य मामलों के लिए न्याय मित्र थे।

    उन्हें 2014 में भारत के अतिरिक्त महा सॉलिसिटर के रूप में नियुक्त किया गया था। उस दौरान, उन्होंने संविधान पीठ के समक्ष एन.जे.ए.सी. मामले सहित कई ऐतिहासिक मामलों में एक विधि अधिकारी के रूप में न्यायालय की सहायता की। वह कनाडाई सर्वोच्च न्यायालय में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे, जहाँ उन्होंने प्रत्यर्पण और पर्यावरण पर एक शोध पत्र प्रस्तुत किया था। उन्हें भारतीय टीम का नेतृत्व करने का दुर्लभ अवसर मिला और उन्होंने जर्मनी के हैम्बर्ग में इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल फ़ॉर द लॉ ऑफ़ द सी (आई.टी.एल.ओ.एस.) के समक्ष भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने निवेश संधि मध्यस्थता में परमानेंट कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन (पी.सी.ए.), हेग के समक्ष भी भारत का प्रतिनिधित्व किया।

    वह भारतीय राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एन.ए.एल.एस.ए.) के शासी निकाय का हिस्सा थे और भारत के सर्वोच्च न्यायालय की मध्यस्थता और सुलह परियोजना समिति (एम.सी.पी.सी.) के साथ निकटता से जुड़े हुए थे। एक विधि अधिकारी के रूप में, उन्होंने माध्यस्थम् अधिनियम में व्यापक बदलाव का सुझाव देने और संस्थागत मध्यस्थता के लिए एक तंत्र का प्रस्ताव देने वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन करने और उसका हिस्सा बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह मध्यस्थता पर विधि बनाने से करीब से जुड़े हुए हैं। वह सभी अपीलीय अधिकरणों के पुनर्गठन और कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व से संबंधित विधिक व्यवस्था की समीक्षा से संबंधित समितियों के सदस्य थे। वह विनिधानकर्ता शिक्षा और संरक्षण निधि प्राधिकरण (आई.ई.पी.एफ़.ए.) के सदस्य भी रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल फ़ॉर क्रिकेट (बी.सी.सी.आई.) मामले में मध्यस्थ नियुक्त किया। वे चुनाव कराने और निर्वाचित निकाय के गठन के लिए सदस्यों और मंडल के बीच सफलतापूर्वक मध्यस्थता कर सकता थे।

    वे कई राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालयों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों की कार्यकारी परिषद में रहे थे।

    31 अगस्त 2021 को उन्हें बार से सीधे भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किए गए।